बहुत समय पहले की बात है, एक प्रसिद्ध गुरू अपने मठ में शिक्षा दिया करते थे। यहाँ पर शिक्षा देने का तरीका कुछ अलग था। गुरू का मानना था कि सच्चा ज्ञान मौन रहकर ही आ सकता है इसलिए मठ में मौन रहने का नियम था। लेकिन इस नियम का एक अपवाद था कि एक साल पूरा होने पर शिष्य गुरू से दो शब्द बोल सकता था।
पहला साल बीत जाने के बाद एक शिष्य गुरू के पास पहुँचा। गुरू जानते थे कि आज उसका एक साल पूरा हो गया है। उन्होने शिष्य को दो उंगलियों दिखाकर अपने दो शब्द बोलने का इशारा किया।
शिष्य बोला, "गंदा खाना" गुरू ने 'हाँ' में सिर हिला दिया।
इसी तरह एक साल और बीत गया और फिर वह शिष्य गुरू के समक्ष दो शब्द कहने पहुँचा।
'बिस्तर कठोर...", शिष्य बोला।
गुरू ने एक बार फिर हों' में सिर हिला दिया।
करते-करते एक साल और बीत गया और इस बार वो शिष्य गुरू से मठ छोड़ने की आज्ञा लेने के लिए उपस्थित हुआ और बोला, "नहीं होगा...."।
"जानता था।", गुरू बोले।
और उसे जाने की आज्ञा दे दी और मन ही मन सोचा कि जो थोड़ा सा मौका मिलने पर भी शिकायत करता है वो ज्ञान कहाँ से प्राप्त कर सकता है।
मित्रों, बहुत से लोग अपनी लाइफ शिकायत करने में ही बीता देते हैं और उस शिष्य की तरह अपने लक्ष्य से चूक जाते हैं। शिष्य ने पहले साल सिर्फ ये बताने के लिए इंतजार किया कि खाना गंदा है। यदि वो चाहता तो इस समय में खुद खाना बनाना सीख सकता था, चीजों को बदल सकता था। हमें शिकायत करने की जगह चीजों को सही करने की दिशा में काम करना चाहिए और शिकायत करने की जगह
"हमें खुद वो बदलाव बनना चाहिए जो हम दुनिया में देखना चाहते हैं।"
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