कर्नाटक की 77 वर्षीय लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता "बानू मुश्ताक" ने इतिहास रच दिया है। वे इंटरनेशनल बुकर प्राइज जीतने वाली पहली कन्नड़ भाषा की लेखिका बन गई हैं। उन्हें यह सम्मान उनकी कहानी संग्रह "हार्ट लैंप" के लिए मिला, जिसका अंग्रेज़ी में अनुवाद दीपा भास्ती ने किया है।
यह पुरस्कार लंदन के टेट मॉडर्न संग्रहालय में आयोजित समारोह में प्रदान किया गया। "हार्ट लैंप" में कुल 12 कहानियाँ शामिल हैं, जो बीते 30 वर्षों में लिखी गई हैं। ये कहानियाँ महिलाओं के अधिकार, जाति, आस्था और सत्ता जैसे सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित हैं, और दक्षिण भारत की पितृसत्तात्मक व्यवस्था को गहराई से उजागर करती हैं।
बानू मुश्ताक का लेखन 1970 के दशक से सक्रिय रूप से जारी है। वे एक जानी-मानी पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और प्रगतिशील विचारधारा की लेखिका हैं। पुरस्कार मिलने पर उन्होंने इसे कन्नड़ साहित्य और महिलाओं के संघर्ष की सामूहिक जीत बताया।
बानू मुश्ताक ने सामाजिक बंदिशों के खिलाफ जाकर शिक्षा प्राप्त की और अपने लेखन के माध्यम से हाशिए पर खड़ी आवाज़ों को मंच दिया। "हार्ट लैंप" की अंतरराष्ट्रीय सफलता न केवल कन्नड़ साहित्य बल्कि समूचे भारतीय क्षेत्रीय साहित्य के लिए एक गौरवपूर्ण क्षण है।
मैन बुकर पुरस्कार फ़ॉर फ़िक्शन (अंग्रेज़ी: Man Booker Prize for Fiction) जिसे लघु रूप में मैन बुकर पुरस्कार या बुकर पुरस्कार भी कहा जाता है, राष्ट्रकुल (कॉमनवैल्थ) या आयरलैंड के नागरिक द्वारा लिखे गए मौलिक अंग्रेजी उपन्यास के लिए हर वर्ष दिया जाता है। बुकर पुरस्कार की स्थापना सन् 1969 में इंगलैंड की बुकर मैकोनल कंपनी द्वारा की गई थी। इसमें 60 हज़ार पाउण्ड की राशि विजेता लेखक को दी जाती है।
बुकर पुरस्कार प्राप्त भारतीय लेखकों की सूची:-
वी.एस. नायपॉल: 1971 में 'इन अ फ्री स्टेट' के लिए.
सलमान रुश्दी: मिडनाइट्स चिल्ड्रन (1981)
अरुंधति रॉय: 1997 में 'द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स' के लिए.
किरण देसाई: 2006 में 'द इनहेरिटेंस ऑफ लॉस' के लिए.
अरविंद अडिगा: 2008 में 'द व्हाइट टाइगर' के लिए.
गीतांजलि श्री: 2022 में 'टॉम्ब ऑफ सैंड' के लिए
बानू मुश्ताक: 2025 में 'हार्ट लैंप' के लिए
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